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हरिहरपुरी का छप्पय छंद




हरिहरपुरी का छप्पय छंद


जग को माया जान, फँसो मत इस वंधन में।

ढूढ़ मुक्ति की राह, कामना शुभतर मन में।।

डरो नहीं संसार से, हो निश्चिंत चला करो।

सहो फजीहत मत कभी,पाप कर्म से नित डरो।।

माया को पहचान कर, छोड़ो इसके संग को।

भ्रमजालों को तोड़ कर, चलो ज्ञान के गंग को।।


माया सच या झूठ, समझ माया की दुनिया।

यह क्षणभंगुर रूप, हर समय फेरत मनिया।।

लेत जन्म मरती सतत, माया दृश्य-अदृश्य है।

गावत-रोवत चक्रवत, लीला करती नृत्य है।।

जन्म-मरण सुख-दुख सहत, तन-मन का संसार यह।

लाभ-हानि के फाँस को, करता अंगीकार यह।।




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2 Comments

Abhilasha deshpande

12-Jan-2023 06:09 PM

Nice

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अदिति झा

12-Jan-2023 04:28 PM

Nice 👍🏼

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